Sunday 10 July 2011

मुक्तिबंधन



"मुक्तिबंधन"

माँ-बाप की गोद में नन्हा सा लाल आया,
फिर स्कूल का पहला दिन आया, फुला नहीं समाया,
एक तप स्कूल में बिताया, एक अलग दुनिया घर में सजाया,
दिलों के तार जुड़े नहीं जुड़े, तो स्कूल से विदा होने का समय आया,
फिर पढने घर से कहीं दूर उड़ान भराया 
सोचा की इतने सालों बाद आज़ादी पाया,
पर खेद तो देखो, जब आजादी मिली तो पिंजरे से प्यार हो गया,
घौंसले से बिदाई का वो भी रिवाज पंछी ने कर आया,
आया, और देखो, एक नयी दुनिया भी बसाया 

उसके लिए थी वो एक नयी शुरुआत, जिंदगी में नया मुकाम आया,
स्वावलंबन का जीवन, उस जीवन ने जिम्मेदारी का पथ पढाया,
जश्न की रातें, और उत्साह भरे दिन लाया,
दोस्ती के रिश्तोने उस दुनिया को भी खूब सजाया,
पढाई-मस्ती की उस दुनिया में खुद को बहलाया,
धीरे-धीरे वहाँ दिल लगाया, नैनो में हज़ार सपने भराया,
उस दुनिया से लगन लग गयी, तो पंछी को ज्ञात हुआ,

कि अब तो यहाँ से भी अलविदा कहने का समय आया
काश इसका कोई अंत ही ना होता,
मित्रो का मेला ज़िन्दगी के गाव में हमेशा रहता, मस्ती के नगमे गुनगुनाता,
और ऐसे भारी कदमों से जाने का, वक़्त ना कभी आता




फिर मुड़कर माँ-बाप को देखा, गृहस्थाश्रम में कदम रखा,
नौकरी नाम से नया विश्व आया, पैसा और जीवनसाथी पाया,
पैंतीस वर्षा कैसे बीते पता ही ना चला,
नौकरी से निवृत्त हुआ, वहा से भी अलविदा मिला

विदा होकर घर और स्कूल से, नौकरी से अलविदा हुआ है,
बिदाई से मुक्ति मिली जब ऐसे लगा,

तो अब ज़िन्दगी से विदा लेने के दौर पर खड़ा है,
जीवन के हर पड़ाव, हर रिश्ते, हर समय को,
याद कर रहा है, तो सोच रहा है,

काश फिर मिलने की कोई वजह मिल जाए,
साथ जो बिताए वो पल मिल जाए,
चल फिर बनाते है सागर-किनारे रेत के मकान,
क्या पता अपना गुजरा हुआ कल मिल जाए 

आना-जाना ये रित ना होती,
ना होती बिदाई की रस्म, ना कोई पल्के रोती,
तो कितनी हसीं ये दुनिया होती,
ना फासले होते, और ना ही रिश्तो में कभी जुदाई होती 

किस फ़रिश्ते ने ये कुदरत सजाई है,
बहुत सही ये बिदाई की रस्म बनायीं है,
क्योंकि मिलने-बिछड़ने का ये खेल है,
इसी के बदौलत तो रिश्तों में मेल है,
तभी दोस्ती में जान और इश्क में खुदा है,
कही नजदीकिय, फिर भी अंतर्मन जुदा है,
तो कहीं दूरिय, फिर भी दिल एक दूजे पर फ़िदा है,

बिदाई नहीं कोई जुल्म, ये तो एक बंधन है,
तकदीर में मिलन के साथ खुदा ने भरा है जो,
बिदाई वो सप्तरंग है,
साड़ी दुनिया जोड़ राखी है जिसने,
दिलों में का वो स्पंदन है,
हाँ, बिदाई तो एक प्यारा सा बंधन है,
आज की शाम ने आनेवाली सुबह से किया जो, वो अभिवंदन है,
चुभता है, फिर भी ये मुक्तिबंधन है 

3 comments:

  1. काश फिर मिलने की कोई वजह मिल जाए,
    साथ जो बिताए वो पल मिल जाए,
    चल फिर बनाते है सागर-किनारे रेत के मकान,
    क्या पता अपना गुजरा हुआ कल मिल जाए.....
    bahut gahrai hai bhavo me...bahut khoob..

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  2. word verification hata do...usse pathko ko tippni dene me taklif hoti hai...

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  3. lines ke aakhir me kuchh mistakes ho gayi hai...A letter disply ho raha hai...use theek kar dijiye..

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