यादें आती हैं
यादें जाती हैं
ख्यालों के गहरे समंदर में
यादें चुभती हैं, यादें ही हंसाती हैं
यादें रुलाती हैं, यादें ही मनाती हैं
मातम-सा मौन हो या जश्न-ओ जीत का पर्व
झोका हवा का बन यादें निकल जाती हैंऔर अंत में इतिहास का एक धुल भरा पन्ना बन जाती हैं
कभी रूकती ही नहीं ये यादें, चुप चाप निकल जाती हैं,
जब छोड़ दे साथ अपना भी साया, देती हैं ये साथ, या कहूँ कि यूँही सताती जाती है,
ख्यालों के गहरे समंदर में
ReplyDeleteयादें चुभती हैं, यादें ही हंसाती हैं..
bahut badhiya...
धन्यवाद....
ReplyDeleteमनोभावों की सार्थक और प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हो!
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